गरिमा कौशिक का आलेख :
मैं जानती हूं कि अगली पंक्ति में जो ख़ूबसूरती की परिभाषा मैं देने वाली हूं, उसकी वजह से मुझे कई लोग कॉमेंट्स में कोसेंगे पर यह परिभाषा ९०% लोग मानते है, बस स्वीकार नहीं करते। अंग्रेजी में ऐसी सोच रखने वाली महिला को लोग गोल्ड डिगर कहते है, पर क्या सारा समाज इसी सोच से ग्रस्त नहीं है?
मैं बिल्कुल भी इस तथ्य से सहमत नहीं हूं। पर जब भी एक पुरुष के आकलन की बात होती है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा उसकी कमाई को दिया जाता है। एक गरीब पर खूबसरत लड़की की समाज में इज्जत हो सकती है पर एक आदमी की इज्जत उसके पैसे से ही होती है।
विवाह तय करते समय, कहीं दोस्त या रिश्तेदार भी आदमी की कमाई को सबसे ज्यादा तवज्जो देते हैं। पर असली खूबसूरती ना पेसो में है ना ही शक्ल में। यह है उस आदमी की खुली सोच मैं। अगर कोई आदमी औरत को अपने बराबर मानते हुए उसे अपने निर्णय लेने की प्रक्रिया में बाधित नहीं करता है, तो वो मेरे अनुसार सबसे खूबसूरत आदमी है।