बहुत उम्मीदें हैं बाबूमोशाय से,मिलिए बाबूमोशाय की नायिका बिदिता बाग से

दीपक दुआ

 

कोलकाता में अपने पढ़ाई के दिनों में ही बिदिता बाग ने मॉडलिंग शुरू कर दी थी।ढेरों बांग्ला फिल्में कर चुकीं बिदिता हिन्दी में ‘फ्रॉम सिडनी विद् लव’ और ‘एक्स-पास्ट इज प्रेजेंट’ में आ चुकी हैं। अब वह ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ में नवाजुद्दीन सिद्दिकी की नायिका बन कर आ रही हैं। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंशः-

क्या है ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’?

यह फिल्म एक ड्रामेटिक एक्शन थ्रिलर है। नवाजुद्दीन इसमें बाबू बने हैं जो एक शार्प शूटर, कांट्रेंक्ट-किलर है। उसकी जिंदगी में कुछ लोग आते हैं और बहुत सारे उतार-चढ़ाव भी आते हैं, यह उसी को दिखाती है। प्रीतिश नंदी के बेटे कुषाण नंदी इसके डायरेक्टर हैं।

आपका रोल इस फिल्म में क्या है?

मैं फुलवा नाम की एक लड़की का रोल कर रही हूं जो एक दुकान चलाती है। बाबू को यह लड़की पसंद आ जाती है और वह उससे शादी करना चाहता है। तो हम दोनों के बीच लव-एंगल दिखाया गया है। चूंकि फिल्म एक थ्रिलर है तो इसके बारे में ज्यादा नहीं बताया जा सकता है।

पहले यह रोल चित्रांगदा सिंह कर रही थीं और उन्होंने यह कह कर इसे छोड़ा था कि यह बहुत ज्यादा बोल्ड किरदार है। इस पर आप क्या कहेंगी?

मैं चित्रांगदा को थैंक्स कहूंगी कि उनके छोड़ने के कारण मुझे इतनी बढ़िया फिल्म करने को मिली। इस फिल्म को लेने का मेरे लिए सबसे बड़ा कारण
नवाजुद्दीन ही थे। रही बोल्ड सीन की बात, तो मुझे हिचक इसलिए नहीं हुई क्योंकि मुझे भरोसा था कि जो भी होगा, वह इसमें जबर्दस्ती ठूंसा गया नहीं
होगा और उसे इस तरह से फिल्माया जाएगा कि वह सस्ता और घटिया न लगे।

हिन्दी सिनेमा में आपको चार-पांच साल हो चले हैं लेकिन अभी भी आपको यहां उचित पहचान नहीं मिल पाई है। क्या कारण पाती हैं आप?

मुझे लगता है कि हर चीज का वक्त होता है। हालांकि इस बीच मुझे बांग्ला फिल्में लगातार मिल रही हैं और विज्ञापनों में तो मैं यहां भी नजर आ ही रही हूं।
मेरे ख्याल से यह एक तरह से अच्छा ही हुआ क्योंकि इस दौरान मैंने खुद को एक अभिनेत्री के तौर पर काफी पाॅलिश किया है।

आप हिन्दी फिल्में करने को इतनी आतुर क्यों हैं जबकि कई बांग्ला अभिनेत्रियां हैं जो वहीं पर रह कर ज्यादा सफलता और शोहरत कमा रही हैं?

मैं हिन्दी फिल्मों के लिए लालची नहीं हूं बल्कि मुझे तो किसी भी भाषा की अच्छी फिल्म मिले तो मैं काम कर लूंगी। लेकिन हिन्दी सिनेमा का आसमान
काफी बड़ा है। यहां आप ज्यादा ऊंचा उड़ सकते हैं। हिन्दी फिल्मों की जो पहुंच है, जो पहचान है उसके मुकाबले बांग्ला सिनेमा काफी सीमित है।

क्या आपको लगता है कि ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ के बाद हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री आपकी तरफ मुड़ कर देखेगी?

हां, मुझे पूरी उम्मीद है। जब यह फिल्म लोगों को पसंद आएगी और इसकी चर्चा होगी तो साथ ही मेरी चर्चा भी जरूर होगी और इसीलिए मुझे इस फिल्म के आने का बेसब्री से इंतजार है।

कोई और हिन्दी फिल्म भी कर रही हैं?

दो-तीन फिल्में की हैं जो अभी रिलीज होनी हैं। ‘टी फोर ताजमहल’ और ‘दया बाई’ पर काम चल रहा है।’

 

 

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपने ‘सिनेयात्राब्लॉग’ के अलावा समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

 

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