रामकृष्ण पाण्डेय की रिपोर्ट
भदोही : भगवान भाव और भक्ति में विद्यमान हैं। अहंकारी को कभी भक्ति नहीँ मिलती। अभिमान त्यागने से प्रभु की कृपा होती है। अच्छा बुरा सब उसी को समर्पण कर देना चाहिए। यह आध्यात्मिक संवाद गुरूवार को अयोध्या से पधारे पंडित तुलसी शरण महराज ने ज़िले के हरीपुर (पूरेदरियाव) अभिया में आयोजित पांच दिवसीय संगीतमय श्रीरामकथा के तीसरे दिन मुनि विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा का प्रसंग सुनाते हुए कहा।
श्रीराम भक्तों के बीच अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि प्राणी का अस्तित्व भगवान के बिना नहीँ है। सब कुछ करने-कराने वाला प्रभु है। इस संसार में परमात्मा के सिवा कुछ नहीँ है। यह सब सत्य ही सत्य है। यह हमारा दोष कि हमें विकार दिखाई देता है। इस संसार में दोष नहीँ है, गुण को दोष बनाना मानव का काम है। प्रभु ने कर्म की प्रधानता को प्रमुखता दी है। वह कहते हैं कि कर्म करो। अच्छे कर्म का मूल्यांकन हम स्वयं करते हैं। भक्ति के साथ हमें कर्म सबसे प्रिय हैं। भक्त और भगवान में कोई अंतर नहीँ होता। वह कभी अभिमान नहीँ करते हैं। भक्तों के कल्याण के लिए उन्हें अवतार लेना पड़ता है। प्रभु को संत सबसे प्रिय है।
विश्वामित्र मुनि और श्रीराम की कथा पर प्रकाश डालते हुए कहा राम तुम्हे जनकपुर में हो रहे यज्ञ में चलना है। मुनि ने कहा यज्ञ एक धर्म है। जब धर्म का उपयोग निजी स्वार्थ के लिए किया जाता है तो उसका स्वरूप बिगड़ जाता है और समाज में गलत परम्परा के साथ निरर्थक बहस होती है। इस दौरान मारीच वध, अहिल्या तारण और दूसरे प्रसंग की कथा सुनाई।
कथा के समापन पर आरती और भजन का भक्तों ने आनंद लिया। इस दौरान भक्त भाव विभोर होकर नाचने लगे। नइया पड़ी मजधार कौन लगाए पार जैसे संगीतमय भजन सुन भक्त खूब आनंद लिया। इस दौरान यजमान पंडित गुलाब दूबे , राकेश दूबे , उमाशंकर दूबे, रामनिधि, सुरेश , रमेश, रामधनी, मुन्ना दूबे , रविशंकर , बब्बू , सुनील सिंह , प्रमोद शुक्ल , दिलीप शुक्ल , कड़ेदिन दूबे, दिनेश शुक्ल, संजय दूबे और काफी संख्या में भक्त मौजूद रहे।