क्या प्रेम में शारीरीक संबंध जरूरी होता है ? इसे सिर्फ शरीर तक सीमित क्यों कर दिया गया है ?

आलेख : रचना गुप्ता

अगर प्रेम में शारीरिक संबंध से आपका अभिप्राय विवाह से पहले शारीरिक संबंधों से है तो मेरा उत्तर “नहीं” होगा.! प्रेम में शारीरिक संबंधों की जरूरत नहीं होती.. प्रेम की अपनी सुंदरता है, कितनी सुंदर तरीकों से अपने आप को व्यक्त करता है? अलग-अलग तरह से.. अपने प्रियतम की आंखों में आंखें डाल कर देखें उनका हाथ अपने हाथों में ले कर देखें वह सब दिल की बातें जो आप किसी से ना कर पाए उनसे कहें.. प्रेम केवल शारीरिक संबंध ही नहीं, क्या पता? यह बाद में बरसों की गहरी मित्रता के रूप में सामने आए. वह प्रेम ही तो होता है जब दो प्यार करने वाले आंखों में आंखें डाल, हाथों में हाथ डाले बिना कुछ कहे कितना कुछ एक दूसरे से कह जाते हैं.. दिल की धड़कन तो जैसे काबू में ही नहीं रहती…. प्रेम तो प्रेम है इसे किसी खांचे में मत डालिए.. आपको सच्चा प्रेम करने वाला कभी भी आपको ऐसे संबंधों के लिए मजबूर नहीं करेगा.

कई लोग ऐसे विचारों को दकियानूसी विचार कहेंगे… एक लड़का अगर किसी लड़की से सच में प्यार करता है तो यकीन मानिए कि वह उसे उसी तरह रखेगा जैसे कोई अपने घर के मंदिर में कोई पवित्र किताब रखता है, ना कि सस्ती नॉवेल की तरह तकिए के नीचे रखेगा.. उसे ऐसे ही सुरक्षित महसूस कराना चाहेगा जैसा वह अपनी बहन को करवाता है! अगर दो जनों को अपने रिश्ते में विश्वास होगा तो वह स्वयं किसी प्रकार की सीमा पार करने से बचेंगे., एक लड़की अगर विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों में पड़ती हैं तो कई प्रकार के असुरक्षाओं से से घिर जाती है! उसे पता चलता है कि उसका प्रेमी अब उसे पहले जैसा सम्मान नहीं देता, उसे यह बात खाने लगती है कि अगर उनके रिश्ते की परिणिति शादी के रूप में नहीं हुई तो क्या होगा? ऊपर से अगर गर्भधारण जैसी कोई समस्या आ जाए तो उसका डर और परेशानी अलग… मैंने देखा है लड़कियां या लड़के इस ग्लानि भाव को यह कहकर,नकारते हैं कि सारी दुनिया ही ऐसा कर रही है अगर मैंने कर लिया तो क्या हो गया.? . ठीक है अगर आप इतने ही आधुनिक हैं तो जैसा अपनी प्रेमिका के साथ करते हैं वैसा ही करने की इजाजत अपनी बहन, भाई, बेटे, बेटी को भी दीजिए.. जिस तराजू में दूसरों को तोलते हैं उसमे खुद भी बैठ कर देखिए..

आज समाज में बदलाव आ रहा है ! युवा अब देर से शादी करते हैं ऐसे में सेक्स संबंधों की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता लेकिन उन बच्चों का क्या जो 14 से 22 की उम्र में यह सब गलतियां कर लेते हैं, क्योंकि वह समझ ही नहीं होती ना ही अपने पार्टनर की असलियत की पहचान होती है..सो ऐसे संबंधों को कैसे उचित ठहराया जा सकता है? अगर अपनी बेटी इन नियमों की धज्जियां उड़ाए तो हमें अपनी भारतीयता भी याद आती है और जो आधुनिकता का झूठा नकाब ओढ़े रहते हैं वह भी हमारे मुंह से उतर जाता है… विवाह पूर्व प्रेम में शारीरिक संबंध ना बनाना यह कोई पुरानी दकियानूसी सोच नहीं बल्कि हमें हमारी समाज द्वारा दिए गए अमूल्य धरोहर है, सकारात्मक विचार है क्योंकि इन्हीं विचारों के दम पर आज हमारे देश में शादियां सफल है.. याद रखिए स्पर्श की भी अपनी एक स्मृति होती है जो हमें कभी नहीं भूलती , चाहे ऊपरी तौर पर हम इसे भुला दें लेकिन जब ऐसे ही लड़के या लड़की की शादी किसी और पार्टनर से होती है तो उनकी शादी में तनाव आते हैं क्योंकि एक अवचेतन मन में वह उस स्पर्श को नहीं भूले.. साथ में मन ही मन तुलना भी शुरू हो जाती है फिर शादियां टूटने लगती हैं! लेकिन तथाकथित मॉडर्न होने के नाम पर अपनी जिम्मेदारियों से भागने के नाम पर, अय्याशी करने के नाम पर जो यह प्रथा का समर्थन हम कर रहे हैं.. वे समाज को कुछ भी सार्थक नहीं देने वाली, बस समाज का नैतिक पतन ही होगा…

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