विकल्प अब ज़रूरत..

विकल्प अब ज़रूरत…

“आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।” मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही यह बात साबित होती आ रही है। जब-जब मनुष्य को किसी चीज की आवश्यकता महसूस हुई, तकनीकी स्तर पर मानव सभ्यता का विकास हुआ।
आज संपूर्ण विश्व भविष्य में होने वाले ऊर्जा संकट से अच्छी तरह वाकिफ़ है। चूँकि उर्जा के साधन सीमित ही हैं इसीलिए नित नए-नए खोज और अनुसंधान होते रहते हैं। ऊर्जा के तौर पर सबसे अधिक जीवाश्म ईंधन पर ही निर्भर किया जाता है।  जीवाश्म ईंधन से तात्पर्य धरती के गर्भ से प्राप्त जीवाश्म से प्राप्त होने वाले ईंधन से होता है जैसे- पेट्रोल, डीजल, कोयला आदि।
जीवाश्म ईंधन को प्राकृतिक रूप से बनने में सदियां लग जाती हैं। वहीं इसके विपरीत यदि इसी प्रक्रिया को वैज्ञानिक तरीके से कुछ दिनों या घंटों में संपन्न कर लिया जाता है, तो उसे जैव ईंधन कहते हैं। जैव ईंधन मुख्यतः पौधों से बनाया जाता है।  जिससे बायो एथेनॉल, बायो डीज़ल और बायो सीएनजी प्राप्त होता है। जैव ईंधन के स्त्रोत के तौर पर एथेनॉल प्रमुख है, जो गन्ने के रस तथा चीनी वाली वस्तुएं जैसे- चुकंदर से प्राप्त होता है। इसी तरह बायो डीज़ल का उत्पादन जट्रोफा करकारा से होता है। जट्रोफा करकारा एक अखाद्य तेल उत्पादक झाड़ी है। जैव ईंधन की एक महत्वपूर्ण बात है कि यह पर्यावरण के अनुकूल ईंधन है। जैव ईंधन के उपयोग से अस्सी फीसदी तक कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जैव ईंधन का इस्तेमाल विमान उड़ाने में किया जा रहा है। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) ने सत्र दो हज़ार पचास तक उड़ानों में पचास फीसदी तक कार्बन उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य रखा है।
स्वच्छ ऊर्जा के रूप में जैव ईंधन के प्रयोग द्वारा भारत ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। सत्ताईस अगस्त को भारत में पहली बार जैव ईंधन के इस्तेमाल द्वारा स्पाइसजेट के एक विमान ने देहरादून से दिल्ली तक उड़ान भरी। यह भारत के लिए स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल में पहला और महत्वपूर्ण कदम है।

केंद्र सरकार ने कुछ महीने पहले राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018 को मंजूरी दी है।  इसके अंतर्गत जैव एथेनॉल, जैव डीज़ल, जैव सीएनजी तथा निगम के ठोस कचरे से प्राप्त इंधन को श्रेणीबद्ध किया गया है। चीनी उत्पादन वाली वस्तुएं जैसे-गन्ने का रस व चुकंदर, स्टॉर्च वाली वस्तुएं जैसे-मक्का, अनुपयुक्त अनाज जैसे-खराब गेंहूँ, टूटा चावल, सड़े हुए आलू तथा ज्वार के डंठल के इस्तेमाल की अनुमति देकर एथेनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल का दायरा बढ़ाया है। अखाद्य तेल जैसे- जट्रोफा करकारा, करंज तथा इस्तेमाल किए जा चुके खाना पकाने के तेल से जैव डीज़ल उत्पादन के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करके प्रोत्साहन दिया है। नीति को जमीनी स्तर पर अच्छी तरह से लागू करने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। जिसमें अगले चार साल में एथेनॉल का उत्पादन तीन गुना करने, आयात में बारह हज़ार करोड रुपए की कमी करने तथा सत्र दो हज़ार तीस तक पेट्रोल में बीस फीसदी तक एथेनॉल मिलाने के लक्ष्य प्रमुख हैं।

भारत के संदर्भ में जैव ईंधन बहुत अधिक महत्व रखता है क्योंकि वर्तमान में भारत अपनी जरूरत की पूर्ति के लिए बयासी फ़ीसदी कच्चा तेल तथा चवालीस फ़ीसदी प्राकृतिक गैस आयात पर निर्भर करता है। जैव ईंधन को बढ़ावा देने से न सिर्फ मेक इन इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा मिलेगा बल्कि भारत सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य में भी मदद मिलेगी। जैव ईंधन की अवधारणा आज की नहीं है बल्कि तब से है जब हेनरी फॉरवर्ड द्वारा पहली कार का आविष्कार किया गया था।  परंतु आसानी से प्राप्त होने वाले जीवाश्म ईंधन के सामने इसको आगे नहीं बढ़ाया गया। वर्तमान परिस्थिति में जब संपूर्ण विश्व निकट भविष्य में होने वाले ऊर्जा संकट के बारे में सोच रहा है। ऐसे में जैव ईंधन का उपयोग क्रांति साबित हो सकता है। जैव ईंधन को अभी तक वैकल्पिक ईंधन के तौर पर देखा जाता रहा है लेकिन ऊर्जा संकट को देखते हुए जैव ईंधन के क्षेत्र में विकल्प स्तर पर नहीं ज़रूरत के स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है।

Priyank Bisnoi

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